गोवर्धन पर्वत को प्रतीकात्मक रूप से गोबर से बनाकर पूजने की परंपरा गोवर्धन पूजा के रूप में मनाई जाती है, जो दीपावली के अगले दिन होती है। इसे बनाने के पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कारण भी हैं।
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यह पर्व श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र के घमंड को तोड़ने की कथा से जुड़ा है।
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श्रीकृष्ण ने लोगों को प्रकृति की पूजा करने की प्रेरणा दी, न कि केवल भगवानों की। गोवर्धन पर्वत को भगवान का स्वरूप मानकर उसकी पूजा की जाती है।
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गोवर्धन पर्वत गोबर से बनाया जाता है, जो एक जैविक खाद है। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और पर्यावरण के लिए लाभकारी है।
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पर्यावरण में गाय के महत्व है। जैसा कि गाय के गोबर और मूत्र में औषधीय गुण होते हैं। इससे कीटाणुनाशक वातावरण बनता है।
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यह पर्व हमें जल, भूमि, पशु और वनस्पति जैसे संसाधनों के सम्मान में संरक्षण का संदेश देता है।
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इस दिन अन्नकूट का आयोजन होता है, जिसमें विविध प्रकार के भोजन बनाए जाते हैं। यह पोषण और सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है।
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गोवर्धन बनाना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि विज्ञान की दृष्टि से प्रकृति के प्रति आभार और संरक्षण का प्रतीक है।
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