बता दें कि, ग्रीन पटाखे ऐसे आतिशबाज़ी उत्पाद होते हैं जो सामान्य पटाखों की तुलना में कम प्रदूषण फैलाते हैं। इनमें सूक्ष्म मात्रा में हानिकारक रसायन होते हैं और ये पर्यावरण के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित माने जाते हैं।
ये पटाखे 25–30% तक कम हानिकारक विषैली गैसें छोड़ते हैं, जैसे सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड।
इनमें विशेष रसायनों का इस्तेमाल होता है जिससे धुआं और शोर कम होता है, जिससे बच्चों, बुजुर्गों और पशुओं को कम समस्या होती है।
असली ग्रीन पटाखों पर QR कोड और CSIR-NEERI का लोगो होता है, जिससे उपभोक्ता नकली और असली में अंतर कर सकें।
कुछ ग्रीन पटाखों में अरोमा तकनीक का उपयोग होता है, जिससे बारूद की गंध की जगह हल्की सुगधिंत आती है।
असली ग्रीन पटाखों पर QR कोड होता है जिसे स्कैन करके उनकी प्रमाणिकता जांची जा सकती है।
CSIR-NEERI और PESO (Petroleum and Explosives Safety Organisation) के लोगो वाले पटाखे ही अधिकृत माने जाते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ग्रीन पटाखे पूरी तरह प्रदूषण-मुक्त नहीं होते, मगर सामान्य पटाखों की तुलना में ये बेहतर ऑप्शन हैं।
2025 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR में तय समय और स्थान पर 18 से 21 अक्टूबर तक ग्रीन पटाखों को जलाने की अनुमति दी है