कभी आपने सोचा है कि, दीवाली पर जुआ खेलने की परंपरा क्यों होती हैं, आए जानें यहां पूरी जानकारी ?

दीवाली हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार है। ये त्यौहार कैतक मास की अमावस्या में मनाया जाता है। इस दिन लोग भाईचारा की मिसाल को कायम करते हैं दीपों के प्रकाश में एक -दूसरे को मिठाईयां बांटते हुए बधाई देते हैं।

दीवाली के कुछ दिन पहले लोग घरों की साफ-सफाई करते हैं और अपने कमरों को सजावटी वस्तुओं से सजाने लगते हैं। दीवाली के दिन लक्ष्मी माँ की पूजा करते हैं।

वहीं इस दिन कुछ लोग ताश तथा जुआ खेलना पसंद करते हैं, जो इसे धार्मिक-संस्कृति से भरी पौराणिक परंपरा मानते हैं।

कई क्षे्त्रों तथा विशेषकर पश्चिमी भारत में लोग लक्ष्मी पूजन के बाद ताश या जुए का खेल शुभ मानके है। उनका मानना है कि इस दिन भाग्य आजमाने से साल भर समृद्धि बनी रहती है।

वहीं कुछ लोग जुआ को पौराणिक कथा से जोड़ते हुए उस परंपरा का हिस्सा मानते हैं। जैसा कि शिव और पार्वती की कथा, जिसमें शिवजी जुए में हार जाते हैं। इसी कारण लोग दिवाली पर जुआ खेलना का भाग्य आजमाते है।

कुछ विशेषकों का मानना है कि बनिया और व्यापारी वर्ग में यह परंपरा रही है कि नए वित्तीय वर्ष के आरंभ में लक्ष्मी पूजन के बाद जुआ खेला जाता है, जिसके तहत वो पूरे वर्ष का भाग्य आजमाते हैं।

दीवाली का त्यौहार उल्लास और प्रकाश से भरा पर्व है। इसलिए ये त्यौहार अपने आस-पास  पड़ोस के लोगों और परिवार के साथ भाईचारा के रुप में मनाया जाता है। इसलिए जुआ जैसे खेलों का उपयोग करने से बचना चाहिए।

जुआ खेलना कानूनी रुप से एक अपराध है और यह खेल आपके परिवार और जीवन को आर्थिक रुप से खतरे में डाल सकता है तथा ये खेल आर्थिक रुप से भरा जोखिम है।