उत्तराखंड कैडर के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी (IFS officer Sanjiv chaturvedi) की कहानी भी अपने आप में अनोखी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले 2002 बैच के IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के केस सुनने से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज भी पीछे हट रहे हैं।
हरियाणा में भी तैनाती के दौरान संजीव चतुर्वेदी की सात साल में 12 बार ट्रांसफर हुई। एम्स से लेकर वन विभाग में कई भ्रष्टाचार के मामले उजागर किए, जिस पर सरकार ने उन्हें अनाधिकारिक दंड भी दिया और खुडे-लाइन कर दिया।
21 दिसंबर 1974 को उत्तर प्रदेश में जन्मे संजीव चतुर्वेदी ने शुरुआती पढ़ाई अपने लोकल में ही करने के बाद देश की टॉप यूनिवर्सिटी मानी जाने वाली मोतीलाल नेहरु इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MNNIT) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री की।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद संजीव चतुर्वेदी ने सिविल सर्विसेज की तैयारी करनी शुरू कर दी और यूपीएससी (UPSC) का एग्जाम दिया। इसमें यूपीएससी क्लीयर की और उनका IFS (इंडियन फॉरेस्ट सर्विस) में सिलेक्शन हुआ। 2002 में संजीव चतुर्वेदी ने चयनित होकर ट्रेनिंग की और इसके बाद उन्हें हरियाणा कैडर मिल गया।
संजीव चतुर्वेदी ने 2005 से 2012 तक सात साल हरियाणा में सेवाएं दी। इस दौरान उनका 12 बार ट्रांसफर हुआ। उन्होंने हिसार और झज्जर में पेड़ लगाने की स्कीम में फंड के अनुचित प्रयोग और गड़बड़ियों को उजागर किया
आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने कोर्ट का सहारा लिया और केंद्र सरकार तक पत्र लिखे, जिसके बाद केंद्र ने हरियाणा सरकार के फैसले को पलटते हुए संजीव के हक में फैसला दिया। संजीव चतुर्वेदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जमकर खुलासे किए।
साल 2012 से 2016 के दौरान एम्स (AIIMS) में 200 से ज्यादा भ्रष्टाचार के मामले सामने आए थे, यह सब आईएफएस अफसर संजीव चतुर्वेदी ने ही उजागर किए थे। भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने के कारण उन्हें 2015 में रामोन मैग्सेसे अवॉर्ड भी मिल चुका है।
हाल ही में 26 सितंबर को IFS officer Sanjiv chaturvedi के मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट में सीनियर न्यायाधीश जस्टिस रविंद्र मैथानी की कोर्ट में सुनवाई होनी थी लेकिन उन्होंने संजीव की अवमानना याचिका पर सुनवाई करने से हाथ पीछे खींच लिए। इससे पहले 2023 में संजीव ने CAT जज मनीष गर्ग के खिलाफ आपराधिक मानहानि का केस दायर किया था।
इसकी सुनवाई नैनीताल की जज ACJM नेहा कुशवाला ने भी इस केस से अपने हाथ ये कहते हुए पीछे खींच लिए थे कि CAT जज डीएस महरा से उनके पारिवारिक संबंध हैं और वह उनसे संबंधित केस नहीं सुन पाएंगी। साल 2013 से अब तक 15 जज संजीव चतुर्वेदी के केसों में से अपना नाम वापस ले चुके हैं।